Tuesday, 8 May 2018

रोजगार की वास्तविक स्थिति पर एक नजर ....... government development....

रोजगार की वास्तविक स्थिति पर एक नजर....... ÃJIT PÁNDEY


2014 में सत्ता में आने के साथ ही भाजपा ने प्रतिवर्ष एक करोड़ रोजगार उत्पन्न करने का वायदा किया था। दावे तो आज भी बड़े-बड़े किए जा रहे हैं, परन्तु वास्तविकता कुछ और ही बताती है।



  • सरकार ने अनेक व्यवसायी संगठनों एवं परामर्शदाता कम्पनियों की रिपोर्ट को इस प्रकार से प्रस्तुत किया है, जिससे यह लगता है कि 2014 से 2017 के बीच आई-बीपीएम, रिटेल, कपड़ा और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में 1.4 करोड़ रोजगार के अवसर दिए गए हैं।

 इनमें से दो क्षेत्र ऐसे हैं, जिनसे कौशल विकास निगम ने 2015 में लक्ष्य प्राप्ति की दृष्टि से एक काल्पनिक आंकड़ा तैयार किया था। इस लक्ष्य की प्राप्ति के कोई प्रमाण नहीं हैं।

  • सरकार ने पर्यटन क्षेत्र में प्रतिवर्ष 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ, 30 से 40 लाख रोजगार के अवसर बढ़ने का दावा किया था।

 यह सत्य है कि प्रतिवर्ष विदेशी पर्यटकों की संख्या 16 प्रतिशत बढ़ रही है, परन्तु पर्यटन उ़द्योग का विकास मात्र 7 प्रतिशत ही हो रहा है। वल्र्ड ट्रेवल एण्ड टूरिज्म कांउसिल की मानें, तो 2017 में इस क्षेत्र में 5 लाख के आसपास ही रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं।

  • प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री ने कर्मचारी भविष्य निधि के लिए बढ़े पंजीकरण को रोजगार बढ़ने के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि 2017-18 में संगठित क्षेत्र में 70 लाख रोजगार बढ़े हैं।

 विमुद्रीकरण एवं वस्तु व सेवा कर के आने के बाद हमारे कई रोजगार औपचारिक क्षेत्र में आ गए हैं। इसके कारण कर्मचारी भविष्य निधि खातों में वृद्धि हुई है। जिन कर्मचारियों को पहले नगद वेतन दिया जाता था, उन्हें अब चेक या डेबिट कार्ड के माध्यम से दिया जाता है। इसका अर्थ नए रोजगार की सृष्टि नहीं माना जा सकता।

  • विमुद्रीकरण एवं वस्तु व सेवा कर के लागू होने के बाद असंगठित क्षेत्र में रोजगार के बहुत से अवसर खत्म हो गए हैं।
  • श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार सरकार ने रोजगार बढ़ाने के लिए कभी एक करोड़ का लक्ष्य रखा ही नहीं है। इसका अर्थ यह है कि एक करोड़ रोजगार का दावा मात्र चुनावी दांवपेंच था?
  • सरकार ने स्व-उद्यम की राह में अवसर उत्पन्न करने के लिए मुद्रा योजना की शुरूआत की। योजना के अंतर्गत अनेक लोगों को स्व-उद्यमी बनाने के साथ-साथ उनके द्वारा रोजगार बढा़ने का दावा किया गया।

सच्चाई यह है कि 2016-17 में मुद्रा ऋण की 44,000 करोड़ की राशि अधिकतर उन लोगों ने ली, जो पहले ही किसी व्यवसाय में संलग्न थे। यह राशि उन्होंने टॉप-अप की तरह प्राप्त की।

सरकार के खोखले दावों से अलग, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी ने इस बात का खुलासा किया है कि फरवरी 2018 में 3.1 करोड़ ऐसे लोग हैं, जो रोजगार की तलाश के असफल प्रयास में भटक रहे हैं। अक्टूबर 2016 से अब तक बेरोजगारी का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है।

संसद में एक प्रश्न के उत्तर में रोजगार मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि 2017 में बेरोजगारों की संख्या 1.83 करोड़ थी, जो 2018 में 1.86 और 2019 में 1.89 करोड़ हो जाएगी।

स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजस्थान में चपरासी के 18 पदों के लिए 12,453 आवेदन आए थे। इनमें 129 इंजीनियर थे।

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत पद खाली हैं, परन्तु सरकार की ओर से इन्हें भरने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।....... ÃJIT PÁNDEY

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