Friday, 14 September 2018

पाचन तंत्र.....Quick revision...... AJIT PANDEY......

 

पाचन तंत्र

        
मनुष्‍य भोजन के लिये अन्‍य प्राणियों पर निर्भर है, इसलिये इसे परपोषित जीव कहते हैं। उन्‍हें दैनिक कार्यों के लिये पोषक तत्‍वों की आवश्‍यकता होती है। पोषण की संपूर्ण प्रक्रिया को पाँच चरणों में बांटा जा सकता है।
  • अंतर्ग्रहण
  • पाचन
  • अवशोषण
  • स्‍वांगीकरण
  • मल परित्‍याग
अंतर्ग्रहण:
मुँह में भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया को अंतर्ग्रहण कहते हैं।
पाचन:
  • कुछ भोजन ऐसे होते हैं जो सीधे अवशोषित नहीं होते हैं, इसलिये गैर-अवशोषित भोजन का अवशोषित किये जाने योग्‍य भोजन के रूप में रूपांतरण की प्रक्रिया को पाचन कहते हैं।
  • भोजन का पाचन मुख से प्रारंभ होता है।
  • मुख में लार ग्रंथियाँ होती हैं जोकि मुख में लार का स्‍त्राव करती हैं। लार में दो प्रकार के एंजाइम टाइलिन और माल्‍टेज पाये जाते हैं।
  • ये साधारण शर्करा को बदलकर उसे पाचन योग्‍य बनाते हैं।
  • प्रतिदिन मनुष्‍य में औसतन लगभग 1.5 लीटर लार का स्‍त्राव होता है। इसकी प्रकृति अम्‍लीय होती है और pH मान 6.8 होता है।
  • आहारनाल के माध्‍यम से भोजन अमाशय में पहुँच जाता है।
अमाशय में पाचन:
  • भोजन के अमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस निकलता है। जठर रस हल्‍के पीले रंग का अम्‍लीय द्रव होता है।
  • अमाशय की ऑक्सिन्टिक कोशिकाओं से हाइड्रोक्‍लोरिक अम्‍ल निकलता है, जो भोजन के साथ आये सभी जीवाणुओं को नष्‍ट कर देता है और एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है।
  • हाइड्रोक्‍लोरिक अम्‍ल भोजन को अम्‍लीय बना देता है जिससे लार की टायलिन की क्रिया समाप्‍त हो जाती है।
  • जठर रस में अन्‍य दो प्रकार के एंजाइम पेप्सिन और रेनिन होते हैं।
  • पेप्सिन प्रोटीन को पेप्‍टोन्‍स में विखंडित कर देता है।
  • रेनिन कैसिनोजेन को केसिन में बदल देता है।
पक्‍वाशय में पाचन:
  • भोजन के पक्‍वाशय में पहुँचने पर सर्वप्रथम यकृत से पित्‍त रस आकर मिलता है।
  • पित्‍त रस क्षारीय होता है और इसका मुख्‍य कार्य भोजन को अम्‍लीय से क्षारीय बनाना है।
  • अग्‍नाशय से अग्‍नाशय रस आकर मिलता है और इसमें निम्‍नलिखित एंजाइम होते हैं:
  1. ट्रिप्सिन: य‍ह प्रोटीन और पेप्‍टोन्‍स को पॉलीपेप्‍टाइड और अमीनो अम्‍ल में बदल देती है।
  2. अमाइलेज: यह स्‍टार्च को घुलनशील शर्करा में बदल देती है।
  3. लाइपेज: यह इम्‍लसीफाइड वसा को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में बदल देती है।
छोटी आंत:
  • यहाँ पाचन की क्रिया समाप्‍त होती है और भोजन का अवशोषण शुरु होता है।
  • छोटी आंत में आंत्रिक रस निकलता है और यह प्रकृति में क्षारीय होता है। लगभग प्रतिदिन 2 लीटर आंत्रिक रस का स्‍त्राव होता है।
  • आंत्रिक रस में निम्‍नलिखित एंजाइम होते हैं:
  1. इरेप्सिन: यह शेष बचे प्रोटीन और पेप्‍टोन्‍स को अमीनो अम्‍ल में परिवर्तित कर देता है।
  2. माल्‍टेज: यह माल्‍टोज को ग्‍लूकोज में बदल देता है।
  3. सुक्रेज: यह सुक्रोज को ग्‍लूकोज और फ्रक्‍टोज में बदल देता है।
  4. लैक्‍टेज: यह लैक्‍टोज को ग्‍लूकोज और गैलक्‍टोज में बदल देता है।
  5. लाइपेज: यह इमल्‍सीफाइड वसा को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में बदल देता है।
अवशोषण:
  • पचे हुए भोजन की रक्‍त में मिलने की क्रिया को अवशोषण कहते हैं।
  • पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आंत की विल्‍ली के माध्‍यम से होता है।
स्‍वांगीकरण:
  • शरीर में अपशोषित भोजन का प्रयोग स्‍वांगीकरण क‍हलाता है।
मल परित्‍याग:
अपचा हुआ भोजन बड़ी आंत में पहुँचता है जहाँ जीवाणुओं द्वारा इसे मल में बदल दिया जाता है जो कि गुदा द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।
पाचन तंत्र से जुड़े विकार:
यहाँ मानव को होने वाली कुछ पाचन सम्बन्धी समस्याएं दी गयी हैं
उल्‍टी: पेट में जलन के कारण मुख से भोजन का बाहर निकलना।
अतिसार (डायरिया): इस संक्रामक बीमारी से आंत में घाव हो जाता है।
पीलीया: त्‍वचा और श्‍लेष्‍म झिल्ली का रंग पीला पड़ जाता है।
पथरी: कोलेस्‍ट्रॉल के जमने से पथरी का निर्माण होता है।
अपच: बड़ी आंत में भोजन के आधिक्‍य प्रवाह के कारण मलपरित्‍याग में परेशानी होती है।......##Ajit pandey

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