Sunday, 7 January 2018

संविधान : भारत की अंतश्चेतना..bilingual....by.....AJIT PANDEY

संविधान : भारत की अंतश्चेतना...
                                       
..AJIT PANDEY                 


 



26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ घोषित किया गया है परन्तु यह अन्य दिवसों की तरह ही सामान्य बीत गया। स्वतंत्र भारत ने अपनी शुरुआत प्रारब्ध की आशाओं एवं आकांक्षाओं के साथ की थी। उसे विभाजन हिन्दू-मुस्लिम झगड़े एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के रूप में अनेक त्रासदियां झेलनी पड़ीं। बी.आर.अंबेडकर ने संविधान के मसौदे को अंतिम रूप देते हुए प्रजातांत्रिक संविधान की आवश्यकताओं पर देश की मजबूरियों को हावी नहीं होने दिया। उन्होंने मसौदे पर धर्मतंत्र के किसी तत्व का प्रभाव नहीं पड़ने दिया। 26 नवम्बर 1949 को उन्होंने इस मसौदे को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया था। सभा ने संविधान को स्वीकृत कर दिया और 1950 में भारत एक प्रजातांत्रिक गणतंत्र बन गया।
हमारा संविधान देश के प्रशासन से जुड़े नियमों से कहीं बहुत ऊपर है। यह एक बहुलवादी एवं विविधतापूर्ण समाज के मूल्यों को समाहित किए हुए है। साथ ही यह स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व, धर्मनिरपेक्षता, लैंगिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक समानता पर आधारित है। दूसरे शब्दों में कहें, तो हमारा संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है।
भारत की व्याख्या किसी एक धर्म, भाषा या संस्कृति के रूप में नहीं की जा सकती। ऐसा करना संविधान के आदर्शों के विरूद्ध होगा। हमारे संविधान का संघीय ढांचा भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं भाषाओं को पनपने का पूर्ण अवसर प्रदान करता है। यह हमारे समाज के वंचितों एवं अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करता है। इसके उदार एवं समानाधिकारवादी मूल्य सभी नागरिकों को अधिकार एवं स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से जिस प्रकार से भारत एक राष्ट्र के रूप में समेकित रहा है, उसका श्रेय संविधान को जाता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक संविधान द्वारा अपने नागरिकों को दिए गए अधिकारों के प्रगतिशील ढांचे पर अनेक बार प्रहार किए गए हैं। 1999 एवं 2002 में एन डी ए सरकार ने संविधान की समीक्षा करने की तैयारी कर ली थी। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायणन् ने ऐसा करने की छूट नहीं दी। उन्होंने कहा था-‘‘हमें इस बात की जांच करनी चाहिए कि संविधान ने हमें विफल किया है या हमने संविधान को विफल कर दिया है।’’
डॉ०अम्बेडकर ने पहले ही इस बात की चेतावनी दी थी कि कुछ तीक्ष्ण प्रशासनिक प्रयासों से संविधान के आदर्शों की अवहेलना करने का प्रयास किया जा सकता है। उन्होंने संवैधानिक नैतिकता के ऐसे आदर्शों को स्थापित किया था, जिसके अंतर्गत संवैधानिक संस्थाओं को पूर्ण सम्मान दिए जाने की बात की गई है। साथ ही अगर ये संस्थान नागरिकों के अधिकारों या संविधान को रौंदने का प्रयास करें, तो उन पर ऊँगली उठाने का भी प्रावधान रखा गया है। दुर्भाग्यवश आज सरकार के कार्यों की आलोचना करने वाले सरकार के आक्रामक तेवर से त्रस्त हैं। सरकार का यह दुष्चक्र संविधान की आत्मा के विरूद्ध है।
संविधान के निर्माण में विभाजन एवं टकराव की जगह समायोजन एवं आपसी समझ को स्थान दिया गया है। सरकार ने राष्ट्रवादिता को बलपूर्वक थोपकर इस तथ्य का नाश कर दिया है। संविधान ही वह शक्ति है, जो भारत को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित करने की हिन्दूवादी शक्तियों से बचाए हुए है। गोरक्षा के नाम पर भारत के अनेक भागों में मुस्लिमों एवं दलितों की हत्या करना संविधान के विरूद्ध है।
हमें अपने देश की निर्धन, वंचित व उपेक्षित जनता के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है। संविधान के प्रति सम्मान व्यक्त करने का सबसे अच्छा माध्यम यही है।......by....AJIT PANDEY

                                                       ENGLISH MEDIUM

On 26th November the 'Constitution Day' has been declared, but it passed the same as in other days. Independent India had its beginning with the hopes and aspirations of the promised person. He suffered many tragedies in the form of the partition of Hindu-Muslim fights and the assassination of Mahatma Gandhi, the Father of the Nation. BR Ambedkar did not let the country compulsion over the requirements of the democratic constitution, giving final touches to the Constitution draft. They did not let the influence of any element of the religion of religion on the draft. On November 26, 1949, he presented this draft before the Constituent Assembly. The Assembly approved the Constitution and in 1950 India became a democratic republic.
Our constitution is far above the rules related to the administration of the country. It covers the values ​​of a pluralistic and diverse society. It is also based on independence, equality, fraternity, secularism, gender, social, political and economic equality. In other words, our constitution is a social document.
India can not be interpreted as a religion, language or culture. Doing this will be against the ideals of the Constitution. The federal structure of our Constitution provides a complete opportunity for India's various cultures and languages ​​to flourish. It provides protection to the underprivileged and minorities of our society. Its generous and equitable values ​​provide rights and freedoms to all citizens. The Constitution is credited for the way in which India has been integrated into a nation since independence.
Since independence, the progressive structure of the rights given to its citizens by the Constitution has been hit many times. In 1999 and 2002, the NDA government had prepared to review the constitution. The then President KR Narayanan did not allow this to happen. He said, "We should check that the Constitution has failed us or we have failed the Constitution."
Dr. Ambedkar had already warned that some sharp administrative efforts could be attempted to defy the ideals of the Constitution. He established such ideals of constitutional ethics, under which it has been said that full respect should be given to constitutional institutions. Also, if the institute tries to crush the rights of the citizens or the constitution, then there is provision for lifting finger on them. Unfortunately, today the government is critical of the aggressive movements of the government's actions. This vicious circle of the government is against the spirit of the Constitution.
Adjustment and mutual understanding have been given place in place of split and confrontation in the constitution building. The government has destroyed this fact by forcefully imposing nationalism. The constitution is the power, which is rescuing the Hindutva forces of converting India into a Hindu nation. The killing of Muslims and Dalits in many parts of India, in the name of Gorkha, is against the Constitution.
We need to be sensitive to the poor, deprived and neglected people of our country. This is the best medium of expressing respect for the constitution.

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